Saturday 26 November 2016

ध्यान




ध्यान क्या है और कैसे किया जाना चाहिये? इस विषय में विभिन्न विशेषज्ञों में भारी मतभेद है। ऐसी स्थिति में एक नए जिज्ञासु को क्या करना चाहिए? उसे अपनी रुचि के अनुसार किसी भी पद्धति से शुरुआत कर देनी चाहिए। जैसे जैसे उसका अपना अनुभव बढ़ेगा उसे आभास होने लगेगा कि क्या करने से ज़्यादा लाभ हो रहा है। कोई भी पद्धति ऐसी नहीं है जो सबके लिए एक समान अनुकूल हो।

ध्यान एक कौशल है हो करने से आता है, मात्र चिंतन मनन से नहीं। यदि कोई व्यक्ति हमें कोई नयी विधि सिखाता है तो हमें न तो विश्वास करना चाहिए और न अविश्वास। हमें खुले मन से प्रयोग करना चाहिए। अगर कुछ लाभ मिले तो अपना लीजिए नहीं तो छोड़ दीजिए। अगर आपको लाभ नहीं हुआ तो भी उस विधि की आलोचना करने में अपना समय नष्ट न करें। हो सकता है वो विधि अन्य व्यक्तियों के लिए अनुकूल हो।

अगर हम इस मार्ग पर चलें तो हम सबसे कुछ न कुछ सीख सकते है। हमें किसी व्यक्ति विशेष से स्थायी रूप से नहीं जुड़ना चाहिए चाहे वो कितना भी महान क्यों न हो। आत्मनिर्भरबनें रहने के लिए हमें उचित दूरी बनाए रखनी चाहिए। पूर्वाग्रहोंसे बचने के लिए हमें अन्य विचारकों का अध्ययन करना चाहिए ख़ासकर उनका जिनके विचार हमारे विचारों से मौलिक रूप से भिन्न हो। इससे हमारा दिमाग़ और खुलेगा। हम नयी गहराइयों को छू पाएँगे।

अगर आप किसी व्यक्ति के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हैं तो भी उनके किसी विचार से असहमत होने का हक़ और साहस हमें हमेशा होना चाहिए। ऐसा मुमकिन नहीं कि हम किसी से शत प्रतिशत सहमत हों। ऐसा तभी हो सकता है जब हमने स्वयं विचार करना ही बंद कर दिया हो। वरना हर व्यक्ति निराला है जो अपनी अनूठी दृष्टि से दुनिया को देखता है।

इस ब्लॉग में हम विभिन्न शैली के विडीओ साँझा करेंगे। आपको जो विधि पसंद आए आप उसे अपना लीजिए। अपने अनुभव अवश्य साँझा करें ताकि अन्य साधक भी लाभ उठा सकें। अगर आपके मन में कोई शंका है तो आप पूछ सकते है। हम यथाशक्ति शंका निवारण का प्रयास करेंगे।

धृति शांडिल्य

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