Monday 7 November 2016

संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे



संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे। 
इस लोक को भी अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे।। 

ये पाप है क्या ये पुण्य है क्या रीतों पर धर्म की मोहरें हैं। 
हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे।।

ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो। 
अपमान रचेता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे।।

हम कहते हैं ये जग अपना है तुम कहते हो झूठ सपना है।  
हम जनम बिता कर जायेंगे तुम जनम गँवा कर जाओगे।।  

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