हमें ऐसे व्यक्तियों के संपर्क में रहना चाहिए जिनके विचार सकारात्मक हों, उच्च कोटि के हों। अगर हम ऐसे लोगों की सेवा करेंगे और उनके जैसा बनने की इच्छा रखेंगे तो नित प्रतिदिन हमारा उद्धार होगा। हमारे विचार ज़्यादा सकारात्मक बनेंगे। नवीन प्रेरणा का संचार होगा।
दूसरी तरफ अगर हमारा संपर्क ऐसे व्यक्तियों से होगा जिनके ह्रदय ईर्ष्या, राग-द्वेष इत्यादि नकारात्मक भावनाओं से ग्रसित हैं तो या तो हम भी उनके जैसे हैं या धीरे-धीरे होते जायेंगे।
इस श्लोक से सत्संगति की महत्ता सिद्ध होती है।
धृति शाण्डिल्य
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