Friday, 27 October 2017

जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे तो सुलगे नाहिं



जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे तो सुलगे नाहिं।
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि-बुझि के सुलगाहिं॥
रहीम
लकडि़यों में आग लगती है और बुझ जाती है। बुझकर फिर नहीं लगती। लेकिन प्रेम-अग्नि एक ऐसी आग होती है, बुझती है और फिर सुलगती है और यह चक्र निरंतर चलता रहता है। जब यह प्रभु-प्रेम की अग्नि बन जाती है तो मनुष्य का कल्याण हो जाता है।


प्रभु से प्रेम की ज्योत जलाओ और भवसागर से पार हो जाओ 

No comments:

Post a Comment

Mudita - An Alternative to Envy

Mudita When we are scrolling through Facebook or Instagram we often feel envy looking at other people’s success or golden mome...