Wednesday, 4 October 2017

सुमिरन सों मन लाइए, जैसे दीप पतंग



सुमिरन सों मन लाइए, जैसे दीप पतंग।
प्राण तजे छिन एक में, जरत न मोरै अंग॥
कबीर

मन को सुमिरन में ऐसे लगाएँ जैसे दीपक से पतंगा लगाता है। वह निडर होकर क्षण भर में जल मरता है, लेकिन पीछे नहीं हटता।

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