चरन छुए मस्तक छुए, तेहु नहिं छाँड़ति पानि।
हियो छुवत प्रभु छोड़ दै, कहु रहीम का जानि॥
रहीम
प्रभु का भजन-पूजन, व्रत-उपासना, यज्ञ-हवन सब किए, लेकिन मोह-माया ने पीछा नहीं छोड़ा। लेकिन प्रभु को हृदय में बसाते ही सारे विकार दूर हो गए और तन-मन निर्मलता से भर गए। अर्थात् हृदय से भजने पर ही प्रभु प्राप्त होते हैं।
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