Sunday, 1 October 2017

कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छाँह





कहा करौं बैकुंठ लै, कल्प बृच्छ की छाँह।
रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम बाँह॥
रहीम

मुझे स्वर्ग का सुख नहीं चाहिए और कल्पवृक्ष की छाँव से भी कोई लेना-देना नहीं है। रहीम कहते हैं, मुझे वह ढाक का वृक्ष अति प्रिय है, जहाँ मैं अपने प्रीतम के गले में बाँह डालकर बैठ सकूँ।

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