Friday, 24 November 2017

कबीर लहरि समुद्र की, मोती बिखरे आय




कबीर लहरि समुद्र की, मोती बिखरे आय।
बगुला परख न जानई, हंसा चुनि-चुनि खाय॥
कबीर
समुद्र अपनी लहरों के साथ किनारे को मोतियों से भर देता है, लेकिन बगुलों को उनकी परख नहीं होती; जबकि हंस उन्हें चुन-चुनकर खा लेता है। उसी प्रकार ज्ञान रूपी मोतियों को भी हंस रूपी विद्वान् सद्गुणी ही चुनकर ग्रहण करते हैं।


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