रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिर पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
रहीम
आपका प्रिय मित्र या बंधु रूठ जाए तो उसे सौ-सौ बार भी मनाना पड़े तो मनाइए, क्योंकि मित्रता में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। छोटी-छोटी बातों से यूँ मित्रता को तोड़ा नहीं जाता। यह संबंध असाधारण होता है, जैसे मोतियों का हार जितनी भी बार टूटता है, उसे फिर से पिरोकर बना लिया जाता है।
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