कबीर कुसंग न कीजिए, पाथर जल न तिराय।
कदली सीप भुजंग मुख, एक बूँद तिर भाय॥
कबीर
कबीर कहते हैं कि कुसंगति कभी मत करो। जैसे पत्थर पर बैठकर
नदी पार नहीं की जा सकती, वैसे ही कुसंग से भला नहीं हो सकता। स्वाति नक्षत्र
में जल की एक बूँद केले में पड़कर कपूर, सीप में पड़कर
मोती और सर्प के मुँह में पड़कर जहर बन जाती है। इसी प्रकार जैसी संगति की जाती है, वैसा ही प्रभाव पड़ता है।
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