भुवंगम बास न बेधई, चंदन दोष न लाय।
सब अँग तो विष सों भरा, अमृत कहाँ समाय॥
कबीर
सर्प चंदन से लिपटे रहें और चंदन की सुगंध उनमें न समाए तो
इसमें चंदन का कोई दोष नहीं है; क्योंकि उनका तो
पूरा शरीर ही विष भरा है। ऐसे में अमृत रूपी गंध उनमें कैसे समा सकती है। इसी
प्रकार दुष्ट लोगों पर भी सत्संग का प्रभाव नहीं पड़ता।
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