Wednesday, 15 November 2017

तै रहीम अब कौन है, एती खैंचत बाय




तै रहीम अब कौन है, एती खैंचत बाय।
खस कागद को पूतरा, नमी माँहि खुल जाय॥
रहीम

हे मनुष्य! तू झूठे गर्व और अभिमान में इतना मत फूल। यह जीवन क्षणिक है और तू कागज का पुतला मात्र है, जो जरा सा पानी पड़ते ही गल सकता है। अतः झूठा घमंड त्याग दे।

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