दोनों रहिमन एक से, जौ लों बोलत नाहिं।
जान परत है काक पिक, ऋतु बसंत के भाँहि॥
रहीम
कौआ और कोयल रंग-रूप में एक समान होते हैं। उनमें भेद करना बहुत कठिन है। लेकिन वसंत ऋतु में जब कौआ काँव-काँव करता है और कोयल कूकती है तो सारा भेद खुल जाता है। अर्थात् बाहरी रूप-रंग धोखा दे सकता है, लेकिन भीतर से निकली आवाज निर्मल होती है।
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