Tuesday 29 August 2017

दया दया सब कोई कहै, मर्म न जानै कोय



दया दया सब कोई कहै, मर्म न जानै कोय।
जात जीव जानै नहीं, दया कहाँ से होय॥
कबीर

प्राणीमात्र पर दया करने की बात तो सभी करते हैं, लेकिन दया के असली भेद को कोई नहीं जानता। जब वे यही नहीं समझते कि सभी प्राणियों में जीवात्मा एक जैसा होता है तो दया कहाँ से कर सकते हैं।

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