Wednesday 7 December 2016

ध्यान की एक सरल विधि


ध्यान की एक सरल विधि

पंडित विजयशंकर मेहता


ध्यान के दो अर्थ हैं। पहला, हम होशपूर्वक जो भी काम करेंगे वह हमें ध्यान के निकट ही ले जाएगा। दूसरी बात है -ध्यान यानी अकेले होने का आनंद। पुन : समझ लें ध्यान का सबसे अधिक गहरा संबंध सांस से है। मन की जितनी भी दशाएं हैं वह सांस से जुड़ी हुई हैं।


यहाँ चार चरण की एक सरल विधि दी जा रही है।


पहला चरण -होश जगाएँ ( अवेयरनेस ) कमर सीधी करके सुखासन से बैठ जाएं। गहरी सांस लें और छोड़ें। अपनी सारी चेतना सांस पर टिकाएं और देखें सांस भीतर आ रही है, बाहर जा रही है। सांस के साथ स्वयं भी भीतर आएं, स्वयं बाहर जाएं। विचार आ रहे हैं या नहीं आ रहे हैं इसकी चिंता लेकर न बैठें। बीच-बीच में विचार आएंगे आने दीजिए। सारा ध्यान भीतर आती सांस के साथ स्वयं को आने में और बाहर जाती सांस के साथ स्वयं को जाने में लगाएं। विचार शून्य सांस लें। जितना हम सांस के प्रति जाग्रत हो जाएंगे उतना हमारा होश जागेगा ।


दूसरा चरण -सहमत हो जाएं ध्यान के समय जब हम सांस ले रहे हैं और छोड़ रहे हों, अनेक बाहरी गतिविधियां हमें सुनाई देंगी। कहीं बर्तन गिरा, गाड़ी का हार्न बजा, पक्षी की आवाज़ आदि। इन्हें बाधा न मानें। हर आवाज़ को ध्यान की सीढ़ी बना लें। धीरे -धीरे आपके भीतर एक भावदशा जागेगी। बाहर के हर व्यवधान को इस भावदशा में सहायक बना लें। कुल मिलाकर हर बात से राजी हो जाएं। इस बीच ध्यान की प्रक्रिया का पहला चरण जारी रहेगा। सांस लेना, सांस छोड़ना और उसके साथ स्वयं की चेतना बाहर जाएगी, भीतर आएगी। अब दोनों चरण एकसाथ होंगे।


तीसरा चरण -मैंगिरा दें लगातार पहली दो क्रियाएं करते रहें। अब इसमें यह तीसरी भावदशा जुड़ेगी। अपनेमैंहोने को धीरे -धीरे समाप्त करना है। मैं सांस ले रहा हूं, यह बोध तब समाप्त होने लगेगा। थोड़ी देर के लिए भूल जाएं कि आप कौन हैं। अपना नाम, पहचान, रिश्ते सब विस्मृत करे दें, सिर्फ़ परमात्मा के अंश बन जाएं। अब तीनों चरण एक साथ करें। करते रहें 3 से 5 मिनट या अपनी सुविधानुसार समय बढ़ा लें।


चौथा चरण -साक्षी हो जाएं जैसे -जैसे यह तीन क्रियाएं करते जाएंगे, वैसे -वैसे शरीर और आत्मा का गेप बढ़ता जाएगा। क्योंकि इन दोनों को सांस ने जोड़ रखा है। सांस इन दोनों के बीच का ब्रिज है। अधिक सांस ली अधिक गेप हुआ और आप अधिक परमात्मा के निकट हुए। स्वयं के साक्षी हो जाएं। स्वंय को यहाँ देखना सीख गए तो 24 घंटे संसार में काम करते हुए स्वंय को देखने लगेंगे। यह चेतना से जुड़ा अलगाव ( कान्शन्स अटैच्ड डिटैच्मेंट ) है। अपने ही भीतर से निकल कर अपने आप को देखें। अब चारों चरण एकसाथ करिए यहीं से ध्यान घटना शुरु होगा।




24 घंटों में कम से कम 10 -15 मिनट इस चरण को दें। ध्यान की कुछ सरलतम विधियाँ हैं, उन्हें अपना लें। कुछ विधियाँ तो कार्यालय में बैठकर भी की जा सकती हैं और कार में यात्रा करते हुए भी।


लेखक: पंडित विजयशंकर मेहता


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