Tuesday 18 July 2017

एकलव्य के जीवन से प्रेरणा



एकलव्य के जीवन से प्रेरणा

एकलव्य की कहानी तो आपने पढ़ी ही होगी या सुनी होगी। ये मानते हुए कि सब इस कहानी को भली भाँति जानते हैं, आइये इस कहानी का विश्लेषण करें और जाने हमें क्या प्रेरणा मिल सकती है।

विश्लेषण में अहम सवाल यह नहीं है कि गुरु द्रोणाचार्य (मेरे विचार में तो उन्हें गुरु कहना अनुचित है लेकिन परम्परा चली आ रही तो कोई बात नहीं, मान लेते हैं) का व्यवहार न्यायोचित था या नहीं। सवाल यह भी नहीं कि एकलव्य का दक्षिणा में अँगूठा काट के दे देना सही था या ग़लत।

असली सवाल ये है कि एकलव्य धनुर्विद्या में  पारंगत हुआ तो कैसे? कुछ लोगों की मान्यता है की वो छुपकर देखता था जब गुरु द्रोण कौरवों और पाण्डवों को शिक्षा देते थे । और गुरु द्रोण की प्रतिमा के आगे अभ्यास करता था । अगर हम इस मान्यता को मान ले तो प्रश्न उठता है कि उसने वो शिक्षा कहाँ से प्राप्त कर ली जो गुरु द्रोण ने कभी दी ही नहीं और वास्तव में वो स्वयं उस ज्ञान से अनभिज्ञ थे।

इस मौलिक प्रश्न का स्पष्ट उत्तर है अंतरप्रेरणा। एकलव्य की शिक्षा का वास्तविक दायित्व गुरु द्रोण ने नहीं अपितु एकलव्य के अंतरगुरु ने निभाया था। एकलव्य इस बात से अनभिज्ञ था, इस लिए वो सारा श्रेय गुरु द्रोण को देता था। अगर उसे सत्य का आभास होता तो शायद गुरु द्रोण उस से छल नहीं कर पाते।

एकलव्य के जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम सब के अंतर्मन में एक अंतर्गुरु (Inner Guru or Self Guru) है जो हमेशा हमारे साथ है और मार्गदर्शन को सदा तत्पर है। अगर हम इस अंतर्गुरु को पहचान लें और उसके बताए हुए रास्ते पर चले तो हमें किसी बाहरी गुरु की तलाश में भटकना नहीं पड़ेगा और हम गुरु रूपी बहरूपियों के शोषण से भी बच जायेंगे।

सच्ची शिक्षा के लिए ज़रूरत है उत्सुकता की, कौतुहल की। हमें नए विचारों को जीवन में प्रयोग करने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए, बिना असफलता के भय से। अगर हमें असफलता मिली तो हमें उससे कुछ शिक्षा मिलेगी जिस से हमारे भविष्य के प्रयास बेहतर बनेंगे। इस प्रकार हम सफलता की तरफ़ अग्रसर होंगे।

एकलव्य के जीवन से अभ्यास की महत्ता का भी ज्ञान होता है। अगर हम किसी नयी कला या कौशल का विकास करना चाहते हैं तो निरंतर अभ्यास करना अनिवार्य है। अभ्यास व्यक्ति को सिद्ध बनाता है। (‘Practice makes a man perfect.’)

अगर किसी समय हमें उलझन हो कि हमें क्या करना है तो अंतर्गुरु हमारे मार्गदर्शन को सहज उपलब्ध है। हमारा अंतर्मन दिव्य शक्तियों से जुड़ा रहता है। हमें इन आत्मिक शक्तियों पर अटूट विश्वास होना चाहिए। हमें मार्गदर्शन के लिए किसी व्यक्ति विशेष की ज़रूरत नहीं, न ही किसी विशेष माध्यम की। आत्मिक शक्तियाँ असीम हैं। वो हमें मार्ग निर्देशन  किसी भी रूप में भेज सकती हैं। कोई व्यक्ति हमारे सम्पर्क में अचानक आ सकता है, हमें कोई समयोचित पुस्तक मिल सकती है, कोई फ़िल्म या विडीओ देखने को मिल सकता है, फ़ेसबुक या व्हट्सएप (whatsapp) में कोई नया विचार या दृष्टिकोण मिल सकता है। हमें बस तत्पर, उत्सुक और ग्रहणशील  रहना है।

एकलव्य के जीवन से प्रेरणा लो। अंतर्मन को या ज़िंदगी को गुरु मानो। कभी निराशा नहीं मिलेगी। कभी शोषण नहीं होगा। निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। अगर विश्वास नहीं होता तो अपने जीवन में प्रयोग कर के देखिये। हाथ कंगन को आरसी क्या? जीवन की इस गहन यात्रा के लिए हार्दिक शुभकामनायें। आपका जीवन सार्थक, उपकारी एवं शुभ हो।

प्रतिभा गोस्वामी



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