Sunday 16 July 2017

आया प्रेम कहाँ गया, देखा था सब कोय




आया प्रेम कहाँ गया, देखा था सब कोय।
छिन रोवै छिन में हँसै, सो तो प्रेम न होय॥
कबीर

प्रेम पैदा होकर फौरन लुप्त हो जाए तो वह अस्थायी होता है। प्रेम में क्षण में खुश होना और क्षण में आँसू बहाना अपने आपको छलना है। इसे प्रेम नहीं कहा जा सकता।

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