Sunday 18 June 2017

बाज़ के जीवन से शिक्षा




बाज लगभग सत्तर वर्ष जीवित रहता है | परन्तु अपने जीवन के चालीसवें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है | उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं |


पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है, तथा शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं | चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है |


पंख भारी होकर उड़ान को सीमित कर देते हैं | भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना, और भोजन खाना तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं |


उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं :-

1. देह त्याग दे |

2. गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे |
3. या फिर "स्वयं को पुनर्स्थापित करे"


जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं, अंत में बचता है तीसरा लम्बा और अत्यन्त पीड़ादायी रास्ता |


बाज चुनता है तीसरा रास्ता और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है | वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, एकान्त में अपना घोंसला बनाता है और तब सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार मार कर तोड़ देता है, चोंच तोड़ने से और वह प्रतीक्षा करता है चोंच के पुनः उग आने का | उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है, और प्रतीक्षा करता है पंजों के पुनः उग आने का | नयी चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक-एक कर नोंच कर निकालता है |


और प्रतीक्षा करता है पंखों के पुनः उग आने का एक सौ पचास दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा के बाद मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान पहले जैसी इस पुनर्स्थापना के बाद वह तीस वर्ष और जीता है ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ |


एक सौ पचास दिन न सही 50 दिन ही बिताया जाये स्वयं को पुनर्स्थापित करने में | जो शरीर और मन से चिपका हुआ है, उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही विस्वास रखे इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी, अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी |

ध्यान रखें की बिना विध्वंस के निर्माण नहीं होता, इसलिए अगर कुछ पीड़ा हो तो उसको अमृत मान ले और सह ले 50 दिन की पीड़ा को |


Shared by Amit Saini on Facebook 

No comments:

Post a Comment

Mudita - An Alternative to Envy

Mudita When we are scrolling through Facebook or Instagram we often feel envy looking at other people’s success or golden mome...