Monday, 31 July 2017

कैसा भी सामर्थ्य हो, बिन उद्यम दुख पाय


कैसा भी सामर्थ्य हो, बिन उद्यम दुख पाय।
निकट असन बिन कर चले, कैसे मुख में जाय॥
कबीर
मनुष्य चाहे जितना समर्थ और शक्तिवान् हो, बिना मेहनत के उसे दुःख के सिवा कुछ हासिल नहीं होता। जैसे सामने थाली में रखा भोजन बिना हाथ चलाए मुँह में नहीं जाता।

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