Wednesday, 19 July 2017

कबीर हमारा कोई नहिं, हम काहू के नाहिं









कबीर हमारा कोई नहिं, हम काहू के नाहिं।
पारै पहुँची नाव ज्यौं, मिलिके बिछुरी जाहिं॥
कबीर
कबीरदास जी कहते हैं कि न तो हम किसी के हैं, न कोई हमारा। जैसे नाव में बैठे लोग किनारे पर पहुँचते ही एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं, वैसे ही मोह-माया का यह बंधन क्षणिक होता है। एक-न-एक दिन सभी को बिछड़ना है।

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