Friday 26 May 2017

प्रेम बिना भक्ति निरर्थक



प्रेम बिना जो भक्ति है, सो निज दंभ विचार।
उदर भरन के कारन, जन्म गँवाए सार॥
प्रेम के बिना की गई भक्ति पाखंड के सिवा कुछ नहीं है। यह तो पेट भरने के लिए की गई स्वार्थपरक भक्ति है, जो जीवन को सारहीन करने के समान है।

कबीर

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