अकॄत्यं नैव कर्तव्य प्राणत्यागेऽपि संस्थिते।
न च कॄत्यं परित्याज्यम् एष धर्म: सनातन:॥
न करने योग्य कार्य को प्राण जाने की परिस्थिति में भी नहीं
करना चाहिए
और कर्त्तव्य का कभी त्याग नहीं करना चाहिए, यह सनातन धर्म है॥
One must not do an improper act even at the cost
of life.
And the duty must be performed. This is eternal religion.
No comments:
Post a Comment