Saturday, 13 January 2018

वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च









वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च।

अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत:

चरित्र की प्रयत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए, धन तो आता-जाता

रहता है। धन के नष्ट हो जाने से व्यक्ति नष्ट नहीं होता 

पर चरित्र के नष्ट हो जाने से वह मरे हुए के समान है॥   




We should guard our character attentively; money can 

come and go. If money is lost, nothing is lost 

but if character is lost, everything is lost.

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