Thursday, 28 September 2017

पहिले यह मन काग था, करता जीवन घात




पहिले यह मन काग था, करता जीवन घात।
अब तो मन हंसा भया, मोती चुनि-चुनि खात॥
कबीर

जब मन में अज्ञान का अँधेरा था तो यह मन कौए की तरह मूर्ख था और जीव-हत्या में लगा रहता था। अब सत्य ज्ञान पाकर यह मन हंस की भाँति हो गया है और ज्ञान तथा विवेक के मोती चुन-चुनकर खाता है।

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