कहु रहीम केतिक रही, केतिक गई बिहाय।
माया-ममता मोह परि, अंत चले पछिताय॥
रहीम
रहीम पूछते हैं, कितना जीवन शेष है और कितना बरबाद कर दिया, जरा इस पर विचार करें; क्योंकि माया, ममता और मोह में फँसकर आदमी सांसारिक क्षणिक सुख तो भोग लेता है, लेकिन स्थायी आध्यात्मिक सुख से वंचित होकर मृत्यु के समय पछताता है और खाली हाथ जाता है। इसलिए क्षणिक सुखों को त्यागकर स्थायी सुख पाने का प्रयास करें।
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