Tuesday, 5 September 2017

शब्द बिचारे पथ चलै, ज्ञान गली दे पाँव








शब्द बिचारे पथ चलै, ज्ञान गली दे पाँव।
क्या रमता क्या बैठता, क्या गृह कँदला छाँव॥
कबीर
जो सत्यमार्ग का राही हो, ज्ञान के अनुसार अपना मार्ग तय करे, वह चाहे चलता-फिरता रहे अथवा घर, वृक्ष, गुफा आदि में कहीं भी विश्राम करे, उसका कोई अहित नहीं होता; क्योंकि वह सत्य मार्ग का राही होता है।

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