Friday 15 September 2017

असमय परे रहीम कहि, माँगि जात तजि लाज



असमय परे रहीम कहि, माँगि जात तजि लाज।
ज्यों लछमन माँगन गए, पारासर के नाज॥
रहीम


कठिन परिस्थितियों में, जब प्राणों पर बन आई हो, तब किसी से याचना करने में भी कोई बुराई नहीं है। जैसे वनवासकाल के कठिन दिनों में लक्ष्मण पराशर मुनि से अन्न-याचना करने गए तो वे याचक नहीं हो गए थे।

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