Thursday, 3 August 2017

साँचे कोइ न पतियई, झूठै जग पतियाय



साँचे कोइ न पतियई, झूठै जग पतियाय।
गली-गली गोरस फिरै, मदिरा बैठ बिकाय॥
कबीर

सच्चाई पर कोई जल्दी विश्वास नहीं करता और झूठ आग की तरह शहर में फैल जाता है। जैसे दूध-दही को गली-मुहल्लों में घूम-घूमकर बेचना पड़ता है और शराब दुकान पर रखी-रखी ही बिक जाती है।

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