Wednesday, 16 August 2017

तन थिर मन थिर बचन थिर, सुरति निरति थिर होय



तन थिर मन थिर बचन थिर, सुरति निरति थिर होय।
कहैं कबीर उस पलक को, कल्प न पावै कोय॥
कबीर

तन, मन और वचन के साथ-साथ जब चित्त की सभी वृत्तियाँ शांत हो जाती हैं, तब हमें आत्म-साक्षात्कार हो जाता है। कबीर कहते हैं कि आत्म-साक्षात्कार का वह पल युगों में मुश्किल से मिलता है।

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