Thursday, 22 June 2017

कबीर यह मन मसखरा, कहूँ तो मानै रोस



कबीर यह मन मसखरा, कहूँ तो मानै रोस।
जा मारग साहिब मिलै, तहाँ न चालै कोस॥
कबीर

कबीर कहते हैं कि यह मन बड़ा चंचल और मजाकिया है। इसे ज्ञान-ध्यान की बातें बुरी लगती हैं। इसे प्रभु-भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए कहो तो उस पर बिलकुल नहीं चलता। अर्थात् मन की चंचलता पर काबू पाना बड़ा कठिन है।

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