Tuesday, 27 June 2017

माया तो ठगनी भई,



माया तो ठगनी भई, ठगत फिरै सब देस।
जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेश॥
कबीर

यह माया कुशल ठगनी बनकर देश-परदेश के लोगों को ठगती रहती है। लेकिन जो कोई ठग इस ठगनी को ठग लेता है, वह निश्चित ही कोई साधु, संत या महात्मा होता है।

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