Wednesday, 14 June 2017

संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एकौ काम



संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एकौ काम।
दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम॥
कबीर

संसारी लोगों से प्रेम और मेल-जोल बढ़ाने से एक भी काम अच्छा नहीं होता, बल्कि दुविधा या भ्रम की स्थिति बन जाती है, जिसमें न तो भौतिक संपत्ति हासिल होती है, न आध्यात्मिक। दोनों ही हाथ खाली रह जाते हैं।

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