श्रद्धाभक्तिसमायुक्ता नान्यकार्येषु लालसा:।
वाग्यता: शुचयश्चैव श्रोतार: पुण्यशालिन:॥
श्रद्धा और भक्ति से समान रूप से युक्त, अन्य कार्यों की इच्छा न
रखने वाले, कम और सुन्दर बोलने वाले, श्रोता ही पुण्यवान हैं॥
Those who possess reverence and devotion
equally, have no
desire for other things, speak less and pure are
virtuous
listeners.
No comments:
Post a Comment